गुरुमुख- तो मनमुख साहब, उपाय सुना आपने? मुनि जी ने कितने स्पष्ट और खरे शब्दों में हम गृहस्थियों को कल्याण का सीधा-सरल रास्ता दर्शाया- संत-संगति यानी पूर्ण गुरु की शरणागति!
मनमुख (थोड़ा चिढ़कर) - हुँ, पर यह रास्ता इतना सीध और सरल भी नहीं है... खासकर मेरे जैसे के लिए, जिसका मन गुरु-वुरु धरण करने को कतई तैयार नहीं।
गुरुमुख (स्नेहपूर्वक) - समझता हूँ! तेरी मनोदशा को मैं भली-भांति पढ़ पा रहा हूँ...तेरे मन को मनाने के लिए ही तो तुझे इस अद्भुत यात्रा पर लेकर आया हूँ...चल, चलते हैं हम अलग-अलग युगों की सैर पर...